योग दर्शन : योग फॉर वेल बीइंग डॉ० तान्या शर्मा
प्रो० (डॉ०) तपन कुमार शांडिल्य प्रधानाचार्य, कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस,पूर्व कुलपति, नालंदा खुला विश्वविद्यालय, पटना
पटना 21 जून: योग का महत्व सदियों से रहा है। योग विज्ञान का जन्म हजारों वर्ष पूर्व हुआ था। योग भारत की धरोहर है। ऋग्वेद में भी योग के महत्व को बताया गया है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के युज धातु से हुई है जिसका अर्थ है ‘जोड़ना’। योग शब्द के कई अर्थ हैं - एकता, समरसता, इत्यादि।
इसके अतिरिक्त योग का आशय है मनुष्य के आंतरिक तथा बाह्य चेतना के बीच संतुलन स्थापित करना। उसे शारीरिक तथा मानसिक रूप से एकाकार करके उसके जीवन में समरसता कायम करना। योग मनुष्य को शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक रूप से उन्नत बनाता है तथा उसे जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुंचाता है।
योग के विकास का इतिहास प्राचीन है। भारतीय सभ्यता के विकास के साथ ही योग का विकास हुआ है, ऐसी मान्यता है। योग का प्रमाणिक चित्रण लगभग 3000 ई० पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के समय की प्राप्त मोहरों तथा मूर्तियों में मिलती है। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय देखा गया कि एक महत्वपूर्ण मुद्रा जिसमें एक पुरुष आकृति को ज्ञान मुद्रा में कमल के फूल पर विराजमान कई पशुओं से घिरा हुआ दिखलाया गया है।
हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान शिव को विभिन्न योगिक मुद्राओं में से इसे एक माना जाता है। इस काल में योग के कई प्रमाण वेदों, उपनिषदों, हिंदू धर्मग्रंथों जैसे - रामायण तथा महाभारत में देखने को मिलता है। रामायण एवं महाभारत जैसे धर्म ग्रंथों में योग दर्शन को स्वीकारा गया है। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी पुस्तक ‘रामायण' में इसका उल्लेख किया है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध क्षेत्र में संशय से घिरे अर्जुन को उनके कर्तव्य बोध का ज्ञान कराया है। महाभारत में गीता योग दर्शन से भरी पूरी है। गीता के अनुसार कर्म कुशलता योग है – “योग: कर्मस कौशलम्”।
श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को बताया “दुख संयोग से वियोग ही योग है”। जैन धर्म में भी योग के प्रमाणों को देखा जा सकता है। उसी प्रकार बौद्ध धर्म भी योग सूत्रों पर आधारित माना गया है। शंकराचार्य, रामानुज, माधवाचार्य और गोरखनाथ ने योग का प्रसार किया। पतंजलि ने योग को व्यवस्थित व्यावहारिक विज्ञान बनाया।
उन्होंने योग सूत्र लिखें और योग के आठ अंग बताये। वे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। उन्होंने योग के चार चरण भी बताये। वे हैं – समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य। कैवल्य भारतीय चिंतन का मोक्ष या मुक्ति जैसा प्रसाद है। योग हिंदू दार्शनिक वैज्ञानिक पतंजलि का विज्ञान है। स्पष्ट है कि योग प्राचीन विज्ञान है। आज संपूर्ण विश्व योगमय हो रहा है।
योग विश्व मानवता को भारत का श्रेष्ठतम उपहार है। स्वस्थ मन, स्वस्थ शरीर, आनंद पूर्ण जीवन का आधार है। योग में विज्ञान और दर्शन का प्रणय है। मार्शल ने मोहनजोदड़ो एंड द इंडस सिविलाइजेशन में लिखा है कि – “शैव मन के समान योग का उद्भव भी आर्यों के पहले हुआ था। वे सिंधु सभ्यता को वैदिक सभ्यता से प्राचीन मानते थे”। लेकिन यहां पर इतिहासकारों ने जोरदार शब्दों में वकालत किया है कि सिंधु सभ्यता वैदिक सभ्यता का विस्तार है।
वैदिक दर्शन में योग का महत्व है। योगाभ्यास से स्मृति शुद्ध होती है। चित्त निर्विकार होता है। योग की बड़ी उपलब्धि स्वयं पतंजलि ने बताई है – “ऋतंभरा तंत्र प्रज्ञा” । बुद्धि ऋतंभरा हो जाती है। ऋतंभरा का अर्थ है - प्राकृतिक नियमों से आच्छादित हो जाना।बुद्धि प्रकृति के छंद रस में एकात्म हो जाती है। वह सत अभ्यास व वैराग्य पर जोर देते हैं।
अभ्यास और वैराग्य परस्पर विरोधी हैं। अभ्यास कर्म है और वैराग्य तटस्थता, लेकिन दोनों ही एक साथ साधना आश्चर्यजनक परिणाम देती है।योग सनातन है। ठीक उसी तरह जैसे सनातन धर्म है। योग सिर्फ शारीरिक या मानसिक लाभ के लिए शरीर को हिलाने डुलाने की प्रक्रिया नहीं है। यह स्वयं को जागृत करने का मार्ग है। योग स्वशासन का वैज्ञानिक कला है। यह आसन और प्राणायाम तक ही सीमित नहीं है बल्कि योग उन पद्धतियों की शिक्षा देता है जिनका अभ्यास मनुष्य के व्यक्तित्व को सुंदरता प्रदान करता है और इसे उत्कृष्ट बनाता है।
महर्षि पतंजलि ने योग को वैज्ञानिक रूप दिया। उन्होंने योग के महत्व को व्यवहारिक जीवन से जोड़ने का कार्य किया। उन्होंने योग को सूत्रों में बांधा जिसे पतंजलि योग सूत्र कहा जाता है। आज संपूर्ण विश्व में योग के महत्व को स्वीकार किया है। भारत में मध्यम वर्ग एवं उच्च आर्थिक वर्ग में योग का आकर्षण बढ़ा है। कोरोना महामारी में योग रामबाण साबित हुआ है। योग स्वस्थ रहने का असाधारण उपाय है। कोरोना काल में संपूर्ण विश्व ने घरों में ही योग करके स्वयं को स्वस्थ रखा। आज आवश्यकता है कि महर्षि पतंजलि के बताये अष्टांक योग का पालन करें और स्वस्थ जीवन की अभिलाषा पूरा स्वस्थ एवं आनंद पूर्ण जीवन के लिए योग को दिनचर्या का भाग बनाने की आवश्यकता है।
यहां पर मुंगेर विश्वयोग विश्वविद्यालय के स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने ठीक ही लिखा “योग का लक्ष्य व्यक्ति को अशुद्ध मन:स्थिति से शुद्ध मन:स्थिति तथा बिखरी हुई इच्छा की अवस्था से संतुलित इच्छा की अवस्था की ओर ले जाना है। उस अवस्था में इच्छा सकारात्मक, रचनात्मक तथा आत्मोन्नति का कारण बन जाती है”।