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BIHAR POLTICS: राजनैतिक नेपोटिज्म पर पशुपति प्रहार : कृष्णा पटेल


पटना 16 जून: बिहार के बदलते राजनैतिक घटनाक्रम पर छात्र जनता दल यूनाइटेड के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष सह वरीय छात्र नेता कृष्णा पटेल ने कहा है कि आज राजनीति में नेपोटिज्म सबसे अधिक हावी है जो कहीं से भी किसी भी पार्टी के समर्पित व कर्मठ कार्यकर्ताओं के लिए हितकर नहीं है और जिस प्रकार से राजनैतिक नेपोटिज्म पर लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद पशुपतिनाथ पारस ने प्रहार किया वो एक सराहनीय पहल है।जिसकी मैं भूरी- भूरी प्रशंसा करता हूं।

क्योंकि आज कई पार्टियों में नेपोटिज्म चरम सीमा पर है। जिसके कारण पार्टी के प्रति समर्पित, ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं व वरीय नेता अपने- आपको अपमानित महसूस कर रहे हैं।राजनीतिक गलियारे में नेपोटिज्म इस कदर हावी है कि पार्टी के लिए दिन-रात एक कर पुरी निष्ठा और 

इमानदारी के साथ जिन वरीय नेताओं व कार्यकर्ताओं ने अपना खून-पसीना बहाते हुए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वो भी सिर्फ इस आशा और उम्मीद में कि आने वाले दिनों में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व हमारे द्वारा पार्टी हित में किए गए कार्यों के बदले मजदूरी स्वरूप पार्टी में कोई सम्मानजनक स्थान देंगे।लेकिन आज लोजपा,राजद, कांग्रेस सहित देश- प्रदेश के अन्य छोटी- बड़ी पार्टियों में पुत्रवाद, भाई- 

भतीजावाद की एक परंपरा चल चुकी है और बड़ी आसानी से पार्टी का नेतृत्व कर रहे माननीय बड़े नेता अपना सरताज राजनैतिक रूप से अनुभवहीन अपने बेटे के माथे पर पहनाकर पार्टी का कमान सौंप दे रहे हैं और विरासत में मिली राजनीति के कारण नतीजा यह है कि राजनैतिक भाषा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरते जा रहा है और स्तरहीन भाषा देखने और सुनने को मिल रहा है।
जिसका एकमात्र मूल कारण नेपोटिज्म का बढ़ावा है जो वास्तविक में हमारे देश के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी।

क्योंकि नेपोटिज्म राजतंत्र का मूल हिस्सा है और यही वजह रहा है कि स्वर्गीय रघुवंश प्रसाद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी, रामकृपाल यादव और पप्पू यादव आदि जैसे सरीखे व बड़े कद्दावर नेताओं को पार्टी में उपेक्षा की गई और उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया।

जिसके कारण रामकृपाल यादव दूसरे दल में चले गए, तो पप्पू यादव ने अपना अलग पार्टी बना लिया और अब्दुल बारी सिद्दीकी जो अभी राजद का रीढ़ माने जाते हैं उनके अंदर भी इस बात का उबाल जरूर है जो कभी-कभी देखने को मिलता है। 

जबकि श्री लालू प्रसाद यादव के बाद राजद का भीष्म पितामह व खेवनहार माने जाने वाले  स्वर्गीय रघुवंश बाबू ने तो जीवन के अंतिम पड़ाव पर राजद में चल रहे पुत्रवाद के खिलाफ विद्रोह का बिगुल भी फूंक हीं चुके थें । काश स्वर्गीय रघुवंश बाबू आज अगर जीवित होते तो जो हस्त्र अभी लोजपा का हुआ है।

शायद उससे भी बुरा हस्त्र अभी तक राजद का हो गया होता और वास्तविकता यही है कि आज भी राजद के कई वरीय नेताओं के मन में यह बड़ा उबाल चल रहा है जो कभी भी विकराल रूप धारण कर राजनैतिक नेपोटिज्म के खिलाफ पशुपतिनाथ पारस जैसे बड़ा प्रहार कर सकते हैं और बड़ा उलटफेर हो सकती है जो कहीं से अनुचित नहीं होगा।

क्योंकि जब तक राजनैतिक नेपोटिज्म की समाप्ति नहीं होगी तब तक पार्टी के प्रति समर्पित, ईमानदार और कर्मठ वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं को उचित मान और सम्मान मिलना संभव नहीं है और ना हीं लोकतंत्र का कोई खास महत्व रह जाएगा ।

इसीलिए जनमत व लोकतंत्र की रक्षा के लिए राजनैतिक दलों से नेपोटिज्म का अंत होना अतिआवश्यक है । 
ताकि विरासत की राजनीति से अलग हटकर जमीनी स्तर पर जनताओं का दुःख - दर्द समझने वाले, राजनीति में तपे- पके,  संघर्षशील व जनताओं का हित चाहने वाले असल सेवक हीं देश- प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर सकें ।किसी बैशाखी के सहारे विरासत की राजनीति करने वाले नहीं।
  


                 

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